कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Thursday, 24 December 2020

झील सा, अधबहा

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गुफ्तगू, बहुत हुई गैरों से, पर गाँठ, गिरह की, खुल न पाई! है अन्दर, कितना अनकहा! झील सा, अनबहा! अब, बहना है, इक दीवाने से, कहना है! मिल जाए, ...
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Thursday, 5 December 2019

लचकती शाखें

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अनसुने ये गीत मेरे, तु जरा गुनगुना.. अनकहा वही, जो है अनसुना, आवाज मेरी, जो न अब तलक बना, गीत ये मेरे, तू जरा गुनगुना... लचकती शाख ...
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Thursday, 25 July 2019

परिशब्द

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यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे ! एहसासों में पिरोया, लेकिन अध-बुना, मन में गुंजित, फिर भी अनसुना, लबों पर अंकित, पर शून...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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