कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Friday, 9 July 2021

रुख मोड़ दो

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कोई रुख मोड़ दो, इस सफर का, या छोड़ दो, ये काफिला, अनमना सा, हो चला, ये सिलसिला! बेखबर, ये अनमना सा, अन्तहीन सफर, हर तरफ, बस, एक ही मंज़र, ब...
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Friday, 11 June 2021

कोरे कागज

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ना गिन पाऊँ, आती-जाती, मन की तरंगें, कोरे, ये कागज सारे, अब कौन रंगे! बीते कई दिन, बस यूँ ही, अनमने से, अर्ध-स्वप्न सी, बीती रातें कई, नैन म...
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Saturday, 18 November 2017

आज क्युँ?

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आज क्युँ ? कुछ बिखरा-बिखरा सा लगता है, मन के अन्दर ही, कुछ उजड़ा-उजड़ा सा लगता है, बाहर चल रही, कुछ सनसन करती सर्द हवाएँ, मन के मौसम में...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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