कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Tuesday, 26 March 2019

अश्रु, तू क्यूँ बहता?

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हुई जो पीड़ा, कण-कण है अश्रु से भरा? शायद टूटा, मन का घड़ा, या बहती दरिया का मुँह, किसी ने मोड़ा, छलक आए ये सूखे से नयन, लबालब, ये म...
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Friday, 12 February 2016

अमरत्व गरल अश्रुधार!

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तुम अविरल अश्रुधार पोछ नही पाओगी! एक अश्रु-धार नभ से होकर आती, रुकती कहाँ सुनती कहाँ ये मन की, निर्झर सी बस आँखों से बह जाती। ...
Monday, 18 January 2016

टूटा हृदय

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अश्रुओं की अविरल मुक्त धार से अपनी, अब क्युँ रोक रही हो राह उसकी? मंडराते बादलों की तरह टूटा है हृदय उसका, अश्रुबूँद क्या भर सकेंगे घा...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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