कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Friday, 10 December 2021

रूठ चला साया

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छूट चला, तन से, तन का साया, उस ओर कहीं, रूठ चला! रही बैठी, संग-संग ठहरी, भर दोपहरी,  कुछ वो चुप, कुछ हम गुमसुम, क्षण सारा, बीत चला, असमंजस म...
Saturday, 12 January 2019

स्वर उनके ही

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स्वर उनके ही, गूंज रहे अब कानों में..... सम्मोहन सा, है उनकी बातों में, मन मोह गए वो, बस बातों ही बातों में, स्वप्न सरीखी थी, उन...
Saturday, 18 June 2016

धीरज

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ओ मेरे उर के विह्वल दुलार! कहो, क्या है तुझमें इतना धीरज......... कि यूँ ही तुम चलते रहो उम्र भर साथ, बिन आशा, बिन आकांक्षा, बिन अभिला...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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