कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Sunday, 24 February 2019

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यूँ तो इक, वहम ने ही बनाया ये फसाना! यूँ भी, है न कुछ चाहत में हासिल! यूँ ही मुस्कुराना, या यूँ खुद ही रूठ जाना! यूँ न था, मेरी आदत में ...
10 comments:
Friday, 27 May 2016

वो चाय जो आदत बन गई

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वो लजीज एक प्याली चाय जो अब आदत बन गई..... सुबह की मंद बयार तन को सहलती जब, अलसाई नींद संग बदन हाथ पाँव फैलाते तब, अधखुले पलकों में उ...
Tuesday, 5 April 2016

मैं मेरे जैसा

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मैं कहता हूँ, देवी जी, थोड़ा मुझको मेरे जैसा तो रहने दो? पत्नी देवी ताने देती मुझको रोज-रोज ही....... कवर फिसल जाती है जब सोफे पे बैठो त...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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