कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Wednesday, 16 December 2020

आसां नहीँ

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आसां नही, किसी के किस्सों में समा जाना, रहूँ मैं जैसा! हूँ मगर आज का हिस्सा, कल के किस्सों में, शायद रह जाऊँ बेगाना! आसां नहीं, किसी और का ह...
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Saturday, 24 October 2020

एक टुकड़ा मन

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शायद, छोड़ आया हूँ, वहीं मैं! एक टुकड़ा मन! घर से, निकला ही क्यूँ, बेवजह मैं? न था आसान, इतना, कि आँखें मूंद लेता, मन के, टुकड़ों को, कैसे रो...
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Thursday, 14 November 2019

एक क्षण

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वो आँख भी, भीगी होगी! वो शाख, रोया होगा! मुड़कर मैं न जब, फिर गया होगा! उसने तोड़ा था, बारीकियों से ये मन, डाली से, ज्यूं झरते हैं सु...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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