कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Saturday, 15 January 2022

ईश्क

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उस मुकम्मल ईश्क की ये शुरुआत है! गर अटक जाएं, कहीं ये पलकें, तो समझिए, मुकम्मल ईश्क की ये शुरुआत है! पर, बस कैद होकर, रह गए कितने नजारे, और,...
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Friday, 3 June 2016

वादियों में कहीं

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कहीं दूर तन्हा हसीन वादियों में, गा रहा है ये दिल अब तन्हाईयों के गीत, चौंक कर जागता है मन बावरा, सोचता यहीं कही पे है मेरे मन का मीत।...
Wednesday, 1 June 2016

राख

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दिल की हदों से गुजरी थी कभी जिन्दगी, किस्से मोहब्बत के तमाम बाकी हैं, चाहत के फूलों से सजा था कभी गुलशन, जिन्दगी के अब कुछ निशान बाकी ह...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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