कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Tuesday, 29 June 2021

फिर याद आए

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फिर याद आए, वो सांझ के साए.... था कोई साया, जो चुपके से पास आया, थी वही, कदमों की हल्की सी आहट, मगन हो, झूमते पत्तियों की सरसराहट, वो दूर, स...
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Saturday, 13 February 2016

स्वर नए गीत के गा

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धीर रख! स्वर नए गीत के गा, चल मेरे साथ अब। रहता था आसमाँ पर एक तारा यही कहीं, गुजरा था टूट कर एक तारा कभी वहीं, मिलते नही वहाँ उनक...
Saturday, 6 February 2016

भटकता कारवाँ

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मंजिलों से दूर कहीं भटक रहा कारवाँ, कौन जाने कब मिलती है मंजिलें कहाँ, सूझता नही है कुछ उन रास्तों पर वहाँ, धूँध सी हर तरफ अब फैली...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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