कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Monday, 13 December 2021

बिखरे हर्फ

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महज, कवि की कल्पना तो नहीं वो! वो, संवेदनाओं में पिरोए शब्द, नयन के, बहते नीर में भिगोए ताम्र-पत्र, उलझे, गेसुओं से बिखरे हर्फ, बयां करते है...
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Friday, 21 April 2017

बेचैन खग

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तट के तीरे खग ये प्यासा, प्रीत की नीर का जरा सा, नीर प्रीत का तो मिलता दोनो तट ही! कलकल सा वो बहता, इस तट भी! उस तट भी! पर उभरती कैसी य...
Sunday, 27 March 2016

आँचल तले खग का नीड़

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आँचल तले बना लेता नीड़, खग एक सुन्दर सा....! आँचल की कोर बंधी प्रीत की डोर, मन विह्ववल, चंचल चित, चितवन चितचोर, लहराता आँचल जिया उठता ह...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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