कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Sunday, 10 April 2016

लब्जों मे बयाँ

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लब्जों में बयाँ जो हम कर न सके, अल्फाज वो ही दिलों में दबी रह गई, वो फसाना बहुत खूबसूरत सा था, बात गुजरे जमाने की अब वो हो गई। वो अल्ह...
2 comments:
Wednesday, 10 February 2016

रुके हुए शब्द

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छलकते नैनों से बह गए हैं नीर निर्झर, थरथराते लबों के शब्द गए हैं  निःशब्द, ओस की बूंदों सी छलकी हैं नीर नीरव, कहानी कोई अनकही रह गई ...

छलकते प्याले

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छलकते प्यालों की उम्र लेकर, समय की कालचक्र में घूमता जीवन, प्यालों की विसात क्या, किस पल छूटे हाथों से, छलकती जाती जीवन इन प्यालों...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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