कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Saturday, 4 November 2017

जलता दिल

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राख! सभी हो जाते हैं जलकर यहाँ, दिल ये है कि जला... और उठा न कहीं भी धुँआ! है जलने में क्या? बैरी जग हुआ दिल जला! चित्त चिढा, मन क...
Friday, 8 April 2016

खनकती हँसी

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वो खनकती हँसी बहुत दिनों बाद सुन सका था मैं....! इक हँसी जिसमें रहती थी खनखनाहट, वो सिर्फ हँसी नहीं एहसास की खनक सी थी वो, कई दिनों से ...
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Thursday, 31 March 2016

एक मधुर कहानी का अन्त

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क्या मधुर कहानी का अन्त ऐसा हीे होता है जग में? नजदीकियाँ हद से भी ज्यादा दोनों में, बेपनाह विश्वास पलता धा उनके हृदय में, सीमा मर्यादा...
2 comments:
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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