कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Thursday, 25 October 2018

यही थे राह वो

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चले थे सदियों साथ जो, यही थे राह वो..... वक्त के कदमों तले, यही थे राह वो, गुमनाम से ये हो चले अब, है साथ इनके, वो टिमटिमाते से तारे,...
Thursday, 19 January 2017

टहनी

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अनुराग के मंजर टहनी पर, खिल आई थी फिर खुश्बू लेकर, मिला हो जैसे उस टहनी को, किसी कठिन तपस्या का प्रतिफल। घनीभूत हुई थी रूखे तन पर, ...
Friday, 12 February 2016

टहनियाँ-फुनगियाँ

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टहनियाँ जीवन की, नींव भविष्य के आंगण की। टहनियों को रखता हूँ संभालकर नाजुक कोमल सी ये टहनियाँ, जीवन उर्जित करने की शक्ति से परिपूर्ण,...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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