कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Thursday, 23 August 2018

दिल धड़कता ही नहीं

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धड़कता ही नहीं ये दिल आज-कल... संवेदन शून्य, संज्ञाविहीन सा ये दिल, उर कंठ इसे गर कोई लगाता, झकझोर कर धड़कनों को जगाता, घाव कुछ भाव से भर...
Wednesday, 27 July 2016

जरा सुनो ये धड़कनें

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जरा सुनो तो, धड़कन बहके से हैं कुछ कल से.... कहती हैं क्या ये पागल सी धड़कनें, इसकी टूटी तारों को फिर छेड़ा है किसने, काबू में क्युँ ...
Tuesday, 26 January 2016

धड़कनों की सदाएँ

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किसकी सदाएँ गूँजती वादियों के दरमियाँ फिर, धड़कने किसी की सुनाई दे रही मुझको यहाँ फिर, क्या हृदय किसी विरहन का व्यथित हो गया है फिर? य...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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