कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Tuesday, 30 April 2019

बांधो मत उसको

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सृष्टि खुद जिसमें, सिमटी है आकर, नित स्वरूप नए से लेकर, खिलती है वो बलखाकर! अद्भुत सी वो चित्रकारी, रचनाओं में, श्रेष्ठतम है ...
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Monday, 2 October 2017

मौन अभ्यावेदन

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मुखर मनःस्थिति, मनःश्रुधार, मौन अभ्यावेदन! ढूंढता है तू क्या ऐ मेरे व्याकुल मन? चपल हुए हैं क्यूँ, तेरे ये कंपकपाते से चरण! है म...
Tuesday, 8 March 2016

ऩारी: ईश्वर का एक एहसास

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एहसास खूबसूरती का जब ईश्वर को हुआ, श्रृष्टि निर्माता ने तब ही जन्म स्त्री को दिया। इक एहसास कोमलता का जब हुआ होगा, तब  उसने स्त्री का...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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