कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Sunday, 11 December 2022

आईने का सच

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सच ही कहता था आईना.... करीब होकर भी, कितना वो अंजाना! हो पास, जैसे कोई परछाईं, किरण कोई, छांव लेकर हो आई, छुईमुई, छूते ही सरमाई, अपनत्व ये, ...
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Saturday, 1 April 2017

संवेदनहीन

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पतंग प्रीत की उड़ती है कोमल हृदयाकाश में, संवेदनहीन हृदय क्या भर पाएगा इसे बाहुपाश में, पाषाण हृदय रह जाएगा बस प्रीत की आश में, मुश्किल...
Tuesday, 19 April 2016

अधूरे सपने

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अधूरे सपने ! ये संग-संग ही चलते है जीवन के! अधूरे ही रह जाते कुछ सपने आँखों में, कब नींद खुली कब सपने टूटे इस जीवन में, कब आँख लगी फिर ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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