कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Monday, 7 June 2021

वो कौन था

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वो, जाने कौन था, बड़ा ही मौन था! पर, वो आँखें, कुछ बोलती थी! शायद दूर था, उसकी आशाओं का घर! बांध रखी थी, उम्मीदों की गठरियाँ, और, ये सफर, का...
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Tuesday, 20 April 2021

तृष्णा

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परिंदा, मन का, पर खोले चाहे उड़ना, रुके कहाँ, मानव की तृष्णा! मानव की खातिर, कितना मुश्किल है खोना, अपूरित ख़्वाहिशों का, जग उठना, उस अनदेखे ...
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Sunday, 16 October 2016

वजूद / अस्तित्व

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अस्तित्व की तलाश में, तू उड़ खुले आकाश में..... ऐ मन के परिंदे, तू उड़ चल हवाओं में, बह जा कहीं बहती नदी सी उतरकर पहाड़ों में, स्वच्छंद सा...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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