कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Tuesday, 8 October 2019

रावण दहन

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मारो एक, तो दस पैदा होते हैं रावण! अगणित रावण, दहन किए आजीवन, मनाई विजयादशमी, जब हुआ लंका दहन, उल्लास हुआ, हर्षोल्लास हुआ, मरा नहीं,...
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Wednesday, 29 May 2019

चल रे मन उस गाँव

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चल रे मन! उस गाँव, उसी पीपल की छाँव चल! आकाश जहाँ, खुलते थे सर पर, नित नवीन होकर, उदीयमान होते थे दिनकर, कलरव करते विहग, उड़ते थे मिल...
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Saturday, 8 December 2018

परिहास

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माना भारी है परिवर्तन का यह क्षण, सुर विहीन अभी है जीवन, ये सम पर फिर से आएंगी, तुम विश्वास करो, ना इन पर, तुम परिहास करो..... मेरे सप...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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