कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Saturday, 6 March 2021

तब मानव कहना

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जग जाएगी जब, सुसुप्त चेतना, उत्थान, उसी दिन होगा तेरा, तब, खुद को तुम, मानव कहना! सृष्टि के, धरोहर तुम, विधाता की, रचनाओं में, मनोहर तुम, पर...
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Tuesday, 3 May 2016

ये तुम ही हो विश्वास नही हो रहा

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जब उसने कहा, ये तुम ही हो विश्वास नही हो रहा? तब मन को गहरा सा एहसास ये हुआ बदल सा गया हूँ शायद मैं थोड़ा, वक्त के थपेड़ों से खुद क...
Monday, 28 December 2015

सन्निकट अवसान

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अवसान सन्निकट जीवन के, छाए स्वत: हो रहे अब दीर्घ, वेग-प्रवाह धीमे होते रक्त के, सांसें स्वतः हो रहे अब प्रदीर्घ। बीत रहा प्रहर निर्बाध अ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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