कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Friday, 14 September 2018

दायरा

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ये अब किन दायरों में सिमट गए हो तुम... छोड़ कर बाबुल का आंगन, इक दहलीज ही तो बस लांघी थी तुमने! आशा के फूल खिले थे मन में, नैनों में...
Thursday, 10 May 2018

ओ बाबुल

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ओ बाबुल! यूं भुला न देना, फिर पुकार लेना मुझे... कोई नन्ही कली सी, मैं तो थी खिली, तेरे ही आंगन तो मैं थी पली, चहकती थी मै, तेरा स्ने...
Friday, 25 March 2016

विह्वल भाव

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भाव कितने ही प्रष्फुटित होते हर पल इस मन में...,! कुछ भाव सरल भाषाविहीन, कुछ जटिल अंतहीन, कुछ उद्वेलित घन जैसे व्यक्त अन्तःमानस में आसन्...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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