कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Tuesday, 28 June 2022

ढ़लती शाम

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बोलो ना, नैन तले, कैसे ढ़ल जाती है शाम! ढ़लते वक्त का आँचल, कौन लेता है थाम! क्षितिज पर, थककर, कौन हो जाता है मौन! शायद, घुल जाती हैं, दो नै...
16 comments:
Wednesday, 27 April 2016

वो बेपरवाह

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वो बेपरवाह, सासों की लय जुड़ी है जिन संग, गुजरती है उनकी यादें, हर पल आती जाती इन सासों के संग। वो बेपरवाह, बस छूकर निकल जाते है वो, ...
Sunday, 3 April 2016

घर

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घर एक चाहतों का ले सका आज मैं, मगर घर नही मेरा वो, जिसमें तुम न रहती हो! घर मेरा वो जहाँ बाल तुम्हारे गीले हों, मैं देखता हुँ आईना और त...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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