कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Tuesday, 11 May 2021

दिल, न दूँगा उधार

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भले ही, बेकार.... पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार! कौन खोए, चैन अपना! बिन बात देखे, दिन रात सपना, फिर उसी से, ये मिन्नतें, करे हजार! भले ही...
16 comments:
Friday, 15 April 2016

तन्हाई के ख्याल

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मैं और मेरा मन, तन्हाई मे जाने किन ख्यालो के संग? ख्यालों के निर्झर सरिता मे वो बहती, कलकल छलछल पलपल हरपल वो करती, जाने किन शिखरों से च...
Thursday, 31 March 2016

वो ठहरा हुआ पल

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वो पल अब तलक ठहरा हुआ है यहीं, मुद्दतों से दरमियाँ ये दूरियाें के रुके हैं वहीं, खोया है मन उस पल के दायरों में वहीं कहीं! अपना सा एक श...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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