कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Monday, 18 April 2016

अब कोई इन्तजार नहीं

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अब कोई इन्तजार नहीं करता वहाँ उस ओर...... बँधी थी उम्मीद की हल्की सी इक डोर, कुछ छाँव सी महसूस होती थी गहराती धूप में भी, मंद-मंद बया...
Sunday, 24 January 2016

श्रृष्टि की मादकता

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मादकता थोड़ी सी यौवन की, उन्माद थोड़ा सा मधु मादकता का, आज मन प्रांगण में भर आया, संग श्रृष्टि की मादकता के, आज मैं भी मद थोड़ा ...
Monday, 28 December 2015

फिर दैदिप्य हुआ पूर्वांचल

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फिर दैदिप्य हुआ पूर्वांचल, प्रखर भास्कर ने पट हैं खोले, लहराया गगण ने फिर आँचल, दृष्टि मानस पटल तू खोल, सृष्टि तू भी संग इसके होल...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Chennai, Tamilnadu, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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