कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Saturday, 24 July 2021

मिथक

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सर्वथा, पृथक थे तुम, पर, लोग कहते हैं, कि मिथक थे तुम! मिथक!  कितना आसान है, यूँ ही कह देना! सत्य को, झुठला देना, किसी अस्तित्व को, नकार देन...
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Sunday, 11 April 2021

वहीं रहना

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मत निकलना, तुम! कभी, मेरी कल्पनाओं के, घेरों से बाहर! यही तो है, जो, बांधता है मुझको, वेधता है, संज्ञाशून्ताओं को, समझने की कोशिश में, तुझको...
18 comments:
Monday, 12 October 2020

मिथक सत्य

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इक राह अनन्त, है जाना, उलझे इन राहों में, मिथ्या को ही सच माना! नजरों से ओझल, इक वो ही राह रहा, भ्रम वो, कब टूटा! मोह-जाल, माया का यह क्रम, ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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