कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Wednesday, 5 April 2017

मन भरमाए

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इक इक आहट पर, क्युँ मेरा ये मन भरमाए! तुम न आए, बैरी सजन तुम घर न आए! तू चल न तेज रे पवन, आस न मेरा डगमगाए, उड़ती पतंग सा ये मन, न जान...
Tuesday, 29 March 2016

एक दिन खो जाऊँगा मैं

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प्रीत का सागर हूँ छलक जाऊँगा नीर की तरह, अंजान गीतों का साज हूँ बजता रहूँगा घुँघरुओं की तरह! एक दिन, खो जाऊँगा मैं, धूंध बनकर, इन बाद...
Saturday, 9 January 2016

झुरमुट के तले

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झुरमुट के तले साए में बैठ, सोचता वह मुसाफिर, क्या पाया मैंने इस राह पर? राहें रुबड़ खाबर, नित् नई चिन्ताएँ, न पीछे की बूझ, न आगे र...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Chennai, Tamilnadu, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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