कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Wednesday, 2 December 2020

राजनीति

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नीति-अनीति, यथार्थ या भ्रम, कहते हैं किसे! शायद, जायज है, सब इसमें, राजनीति! कहते है शायद जिसे! यूँ तो, गैरों की सुनता हूँ, अनुभव, चुनता हूँ...
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Sunday, 27 January 2019

अवधारणा

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पुनर्सृजित होते हो, कल्पनाओं में तुम ही... मूर्त रूप हो कोई, या हो महज कल्पना, या हो तुम, मेरी ही कोई, सुसुप्त सी चेतना, हर घड़ी, ...
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Saturday, 16 January 2016

सपनों का भ्रमजाल

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सपनों का फैला भ्रम जाल, देख मानव हो रहा निहाल, अकल्पित भयंकर यह मकर जाल। भ्रमजाल मे जकड़ता हर पल, यथार्थ से दूर ले जाता पल पल,...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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