कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Monday, 21 January 2019

अभागिन

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कदाचित्, न कहना खुद को तुम अभागिन! स्नेह वंचित, एक बस तू ही नहीं, नीर सिंचित, नैन बस इक तेरे ही नहीं, कंपित हृदय, सिर्फ तेरा ही नहीं, ...
6 comments:
Friday, 16 September 2016

अधलिखी

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अधलिखी ही रह गई, वो कहानी इस जनम भी .... सायों की तरह गुम हुए हैं शब्द सारे, रिक्त हुए है शब्द कोष के फरफराते पन्ने भी, भावप्रवणता खो...
Sunday, 31 July 2016

बर्फ सी जिन्दगी

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बर्फ सा बदन, पिघल रहा हर पल तह पर पत्थरों की.... जिन्दगी ये बर्फ के फाहा सी, तन चाँदी सम, प्रखर तेज आभा इसकी, फूलों सा स्पर्श, कोमल क...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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