कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Thursday, 23 December 2021

आईना

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वक्त संग, तुम ढ़ल ही जाओगे, कब तलक, आईनों में, खुद को छुपाओगे! वक्त की, खुली सी है ये विसात, शह दे, या, कभी दे ये मात, इस वक्त से, यूं न जीत...
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Monday, 8 July 2019

इस हुजूम में

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कौन हैं हम? न जाने इस भीड़ में क्यूं मौन हैं हम! इक प्रश्न है हर नजर में, हर प्रश्न में गौण हैं हम, अनुत्तरित हैं, असंख्य ऐसे प्रश्न इस हु...
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Wednesday, 11 July 2018

लकीरें

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मिटाए नहीं मिटती ये सायों सी लकीरें....... कहता इसे कोई तकदीर, कोई कहता ये है बस हाथों की लकीर, या गूंदकर हाथों पर, बिछाई है इक बिसा...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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