कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Showing posts with label शहनाई. Show all posts
Showing posts with label शहनाई. Show all posts
Saturday, 7 August 2021

वही पुरवाई

›
भरमाती, संग चली आई, वही पुरवाई! कितनी ठंढ़ी सी, छुवन, जागे, लाख चुभन, वही रातें, वही सपने, फिर लिए आई, भरमाए पुरवाई! बांधे, अपनेपन के धागे, ...
22 comments:
Tuesday, 31 July 2018

तन्हाईयाँ

›
हँस ले जी भर के, आज मुझपे ऐ तन्हाईयाँ, सजेंगी महफिलें, तब आऊंगा बुलाने मैं तुझे, जल जाएगा तू भी, देखकर मेरी कहकशाँ.... चलो ये माना...
Sunday, 16 April 2017

गूंजे है क्युँ शहनाई

›
क्युँ गूँजती है वो शहनाई, अभ्र की इन वादियों में? अभ्र पर जब भी कहीं, बजती है कोई शहनाई, सैकड़ों यादों के सैकत, ले आती है मेरी ये तन्हा...
›
Home
View web version

About Me

My photo
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
View my complete profile
Powered by Blogger.