कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Tuesday, 24 March 2020

अद्भुत कोरोना

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अद्भुत है, कोरोना! शायद, जरूरी है, इक डर का होना! कर-बद्ध, जुड़े रब से हम, मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर है सूना, है ये स्वार्थ,  या प्र...
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Saturday, 22 February 2020

लहर! नहीं इक जीवन!

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वेदना ही है जीवन, व्यथा किसने ना सहा! क्यूँ भागते हो जीवन से? लहरों को, कब मैंने जीवन कहा? इक ज्वार, नहीं इक जीवन, उठते हैं इक क्ष...
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Saturday, 18 January 2020

जलते रहना, ऐ आग!

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जलते रहना, ऐ आग! इक सम्मोहन सा है, तेरी लपटों में, गजब सा आकर्षण है,    जलाते हो, पर खींच लाते हो, ध्यान! जलते रहना, ऐ आग! ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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