कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Saturday, 12 February 2022

आवाज

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कल, कहीं, किस्सों में मिलूंगा, किधर, न जाने, कितने हिस्सों में बटूंगा, आज, पुरकशिश, इक आवाज़ हूँ, सुन लो, धड़कता साज हूँ! भटक कर रह गई, कहीं...
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Sunday, 13 December 2020

निराधार आकाश

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निराधार तो नहीं, कहीं ये आकाश मेरा! डिग रहा क्यूँ, विश्वास मेरा! देशहित से परे, न आंदोलन कोई, देशहित से बड़ा, होता नहीं निर्णय कोई, देशहित स...
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Saturday, 9 December 2017

संगतराश

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जिंदादिल हूँ, कारीगर हूँ, हूँ मैं इक संगतराश... तराशता हूँ शब्दों की छेनी से दिल, बातों की वेणी में उलझाता हूं ये महफिल, कर लेना ग...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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