कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Showing posts with label संगिनी. Show all posts
Showing posts with label संगिनी. Show all posts
Saturday, 12 May 2018

क्या हो तुम

›
क्या हो तुम? क्यूं आते हर पलों में याद हो.... क्यूं मैं हूं, इक तुम्हारे ही आस में? कभी कुछ पल जो आओ अंकपाश में, बना लूं वो ही ल...
Monday, 20 February 2017

सँवरती रहो

›
ऐ मेरी संगिनी, देखूँ जब जब भी मैं तुमको...... सजी-सँवरी सी दिखना, दिखना जब भी तुम मुझको, हो माथे पे बिंदिया, हाथों में क॔गन, मांग सिंद...
Monday, 23 May 2016

एक आलाप जीवन का

›
तुम तो आलाप भर उभरती हो मेरे गीतों में ढ़लकर। हकीकत हो तुम मेरे अर्धजीवन की, अर्धांगिनी हो तुम ही मेरी अधूरे सपन जीवन की, संगिनी तुम ...
›
Home
View web version

About Me

My photo
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
View my complete profile
Powered by Blogger.