कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Tuesday, 17 March 2020

रातों की गहराई में

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रातों की गहराई में! जब ये सृष्टि सारी, ढ़ँक जाती है, प्रयत्न करता हूँ फिर मैं भी, खुद को ढ़ँक लेने की, जीवन के कड़वे सच से, मु...
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Thursday, 28 July 2016

रातों के रतजगे

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ये रातों के रतजग, सब उनके हैं दिए, नींदे चुराकर मेरी, न जाने किधर वो चल दिए? कुछ कहा था कभी उसने, जगाए थे उसने, आँखों में कितने ही सप...
Monday, 20 June 2016

उफ यह रात

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उफ, यह डरी सहमी सी रात, तेज ढ़ले भी तो कैसे..,.....? उफ, ये रात ढलती है कितनी धीरे-धीरे, कितने ही मर्म अपने गर्त अंधेरे साए में समेटे,...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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