कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Tuesday, 20 November 2018

सांध्य-स्वप्न

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नित आए, पलकों के द्वारे, सांध्य-स्वप्न! अक्सर ही, ये सांध्य-स्वप्न! अनाहूत आ जाए, बातें कितनी ही, अनथक बतियाए, बिन मुँह खोले, मन ही...
Saturday, 6 February 2016

जीवन सांध्य प्रहर

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उमर अवसान की ओर अग्रसर, मद्धिम हो रहा उफनते ज्वार का आवेग, आँखों पर छा रहा हल्का सा धुंधला धीरे धीरे, अवसान की संध्या का मैं करता मनुह...
Friday, 22 January 2016

सांध्य झंझावात

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झंझावात क्या डरा पाएंगे जीवन को? सांध्य गगन में उड़ते नीड़ों को खग, रवानियाँ करते झूमते हवाओं मे तब, भूले रस्ता झंझा के झोंकों म...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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