कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Sunday, 2 February 2020

बसंत के दरख्त-1

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गुजर सा गया हूँ! या, और थोड़ा, सँवर सा गया हूँ? बसंत के ये, दरख्त जैसे! कई रंग, अंग-अंग, उभरने लगे, चेहरे, जरा सा, बदलने लगे...
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Saturday, 6 April 2019

फीकी सी चाय

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चंद बातें, फीकी सी पड़ती इक चाय.... एक रूह, एक मैं, एक तुम, एक पल एक संग, एक एहसास, बेवजह एक बकवास, एक ही जिद, विछोह भरे वो पल, और ...
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Saturday, 30 April 2016

समय की सिलवटें

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गुजरता यह समय, कितने ही आवेग से........! कुलांचे भर रही, ये समय की सिलवटें, बड़ी ही तेज रफ्तार इसकी, भर रही ये करवटें, रोके ये कब र...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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