कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Thursday, 15 August 2019

विश्व विजयी तिरंगा

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चलो न हम रंगें, ये जमीं, ये विश्व, ये आकाश, अनूठे से, ये तीन रंग, हैं हमारे पास! पर्वतों के शीष पर, हैं बिखेरे हमने रंग, ये पहाड...
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Sunday, 2 June 2019

सौंधी मिट्टी

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बरबस, लौट आते हैं परदेशी, सौंधी सी खुश्बू, मिट्टी की अपनी पाकर! सौंधी सी ये खुश्बू, है अपनेपन की, अटूट संबंधो और बंधन की, अब भस्म हो...
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Tuesday, 14 August 2018

स्वतंत्रता (900वीं रचना)

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लहराकर ये तिरंगा, कर रही है यही पुकार! सीमाएं हों सुरक्षित, राहें हों बाधा-रहित, बनें निर्भीक हम, हों सदा निर्विकार, प्रगति के पथ पर ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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