कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Saturday, 28 May 2016

लम्हों के विस्तार

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निश्छल लम्हा, निष्ठुर लम्हा, यौवन लम्हों के साथ में... हर लम्हा बीत रहा, इक लम्हे के इंतजार में, हर लम्हा डूब रहा, उन लम्हों के ही विस...
Tuesday, 3 May 2016

हँसते मेरे अंश

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निशाँ मेरी अंश के बिखरेे कण-कण में लगते हैं यहाँ! वक्त ने आज फिर से बदली हैं करवटें, राहों ने मोड़ दी है फिर से जीवन की दिशाएँ, बदला-...
Saturday, 9 April 2016

शब्द

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फैले हैं जाल शब्द के, मायने उलझती ही रहीं! शब्द बच गए थे पोटली में, बातें इक तरफा ही रहीं, शेष बातों के लिए शब्द तड़पती ही रहीं! अब ब...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Chennai, Tamilnadu, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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