कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Saturday, 25 January 2020

26 जनवरी : ऐ देश!

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ऐ देश, तू अब जाग जरा, देखे जो, स्वप्न तूने, जा, पा उसे, उनके  पीछे, तू भाग जरा! ऐ देश, तू वही लहू बन, नस-नस, मे...
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Thursday, 25 January 2018

तिरंगा गणतंत्र

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1.  उठो देश उठो देश!  यह दिवस है स्वराज का, गणतंत्र का, गण के तंत्र का, पर क्युँ लगता? यह गणराज्य कहीं है बिखरी सी, जंजीरों में जकरा...
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Thursday, 26 January 2017

उठो देश

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उठो देश! यह दिवस है स्वराज का, गण के तंत्र का, पर क्युँ लगता? यह गणराज्य हमारी है बिखरी सी, जंजीरों में जकरा है मन, स्वाधीनता है खोई ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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