अंजुरी भर भर अाम रसीली मंजराई,
वसुधा के कणकण पर छाई तरुनाई,
स्वागत है बसंत ने ली फिर अंगड़ाई।
रूप अतिरंजित कली कली मुस्काई,
प्रस्फुटित कलियों के सम्पुट मदमाई,
स्वागत है बसंत ने ली फिर अंगड़ाई।
कूक कोयल की संगीत नई भर लाई,
मंत्रमुग्ध होकर भौंरे भन-भन बौराए,
स्वागत है बसंत ने ली फिर अंगड़ाई।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२५ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय श्वेता जी।
Deleteवाह सुंदर अलंकृत अभिव्यक्ति सरस बसंत सी ।
ReplyDeleteआदरणीया कुसुम जी, हृदय से आभारी हूँ
Deleteवसंत ने ली फिर अंगड़ाई....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
वाह!!!
आदरणीया सुधा देवरानी जी, हृदयतल से आभार ।
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