Tuesday, 16 February 2016

बसंत ने ली अंगड़ाई

अंजुरी भर भर अाम रसीली मंजराई,
वसुधा के कणकण पर छाई तरुनाई,
स्वागत है बसंत ने ली फिर अंगड़ाई।

रूप अतिरंजित कली कली मुस्काई,
प्रस्फुटित कलियों के सम्पुट मदमाई,
स्वागत है बसंत ने ली फिर अंगड़ाई।

कूक कोयल की संगीत नई भर लाई,
मंत्रमुग्ध होकर भौंरे भन-भन बौराए,
स्वागत है बसंत ने ली फिर अंगड़ाई।

6 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २५ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय श्वेता जी।

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  2. वाह सुंदर अलंकृत अभिव्यक्ति सरस बसंत सी ।

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    1. आदरणीया कुसुम जी, हृदय से आभारी हूँ

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  3. वसंत ने ली फिर अंगड़ाई....
    बहुत सुन्दर रचना...
    वाह!!!

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    1. आदरणीया सुधा देवरानी जी, हृदयतल से आभार ।

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