Monday, 4 April 2016

शायद भरम था वो

क्या खुशबू थी वो, जो मेरी साँसों में उतर गई?

शायद कचनार खिली हैं कहीं?
क्यों बिखरे है इतर हवाओं में यूँही?
कहीं रजनीगंधा ने छेड़ी गजल तो नहीं?
साँसों में ये मादक महक सी है क्युँ?

क्या हवा थी वो, जो मुझको छूकर गुजर गई?

अनायास रुक गया था मैं क्युँ?
पुकार गुंजी थी किन सदाओं की?
सिहर सी गई थी क्युँ साँसे मेरी?
सरसराहट उन पत्तियों में है क्युँ?

क्या सपना था वो, जो मुझको बेखबर कर गई?

एतबार क्युँ मेरे मन को नही?
कहीं है वो मेरे करीब या कि नहीं?
कही भ्रम वो मेरे मन का तो नहीं?
आँखों में उलझे हैं जाल से क्युँ?

शायद भरम था वो, जो मुझको गुमराह कर गई!

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