प्रशस्त हो रही सामने संथ्या जीवन की,
कुछ भीनीं यादें ख्यालों में पल रही सपनों सी,
सपने ही होते वो जो सच ना बन पाते,
बोझल होती साँसों मे कभी खुश्बु बिखराते,
बैठे-बैठे उन आँखो में आँसू भर आते,
रिश्ते ही तो हैं वे भी जो अपने ना बन पाते!
संथ्या जीवन की पल-पल प्रशस्त होते ही जाते....,
इक सुखी फूल किताबों में कहीं गुम सी,
यादों में अबतक वो, चुभती मन में काटों सी,
सिमट आई यादें वो साँसों में बन कंपन सी,
पंखुड़ियाँ बिखर रही, अब उन सूखे फूलों की!
प्रशस्त हो रही हर पल सामने संध्या जीवन की.....
कुछ भीनी-भीनी यादें संग चल रही सपनों सी........
कुछ भीनीं यादें ख्यालों में पल रही सपनों सी,
सपने ही होते वो जो सच ना बन पाते,
बोझल होती साँसों मे कभी खुश्बु बिखराते,
बैठे-बैठे उन आँखो में आँसू भर आते,
रिश्ते ही तो हैं वे भी जो अपने ना बन पाते!
संथ्या जीवन की पल-पल प्रशस्त होते ही जाते....,
इक सुखी फूल किताबों में कहीं गुम सी,
यादों में अबतक वो, चुभती मन में काटों सी,
सिमट आई यादें वो साँसों में बन कंपन सी,
पंखुड़ियाँ बिखर रही, अब उन सूखे फूलों की!
प्रशस्त हो रही हर पल सामने संध्या जीवन की.....
कुछ भीनी-भीनी यादें संग चल रही सपनों सी........
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति है भाई साहब । जीवन के स्मरणों को चित्रित करते भाव अच्छे हैं ।
ReplyDeleteराजेश जी, शुक्रिया।
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