हैं कहीं, कोहरे सी जमीं?
या फिर, धुंधलाने लगा है जरा सा!
पारदर्शी सा, ये शीशा!
कुछ भी, पहले सा नहीं!
पटल वही, दृश्य वही, साँसें हैं वही!
कुछ, नया भी तो नहीं!
शायद, घुल रहा हो भ्रम?
भ्रमित हो मन, डरा हो अन्तःकरण!
दिशाएँ, हो रही हो नम!
कहीं, बारिश भी तो नहीं!
तपिश है, जलन है, गर्माहट है वही!
फिर क्यूँ, नमीं सी जमीं!
चुप होने लगी, हैं तस्वीरें!
ख़ामोश होने लगी हैं, सारी तकरीरें!
मिटने लगी हैं ये लकीरें!
भटकने लगे, हैं ये कदम!
हलक तक, आकर रुकी है जान ये!
अटक सी, गई ये साँसें!
है अपारदर्शी, ये व्यापार!
मनुहार, चल रहा शीशे के आर पार!
धुआँ सा, उठता गुबार!
हैं कहीं, कोहरे सी जमीं?
या फिर, धुंधलाने लगा है जरा सा!
पारदर्शी सा, ये शीशा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत सुंदर कविता।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद नितीश जी।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 19 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आदरणीया दी
Deleteसार्थक और सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मयंक जी।
Deleteवाह! जीवन कलश से ढलकी अमृत-बूंदें!
ReplyDeleteमनमोहक प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार आदरणीय विश्वमोहन जी।
Deleteकुछ दृश भी हमने बदल डालें है और शीशा भी धुंधला कर रहे हैं.
ReplyDeleteसचाई से सब भाग रहे हैं.
बहुत खूब
सार्थक प्रतिक्रिया । रचना से जुड़ने हेतु साधुवाद आदरणीय रोहितास जी।
Deleteजीवन को देख्नेने क नया अंदाज़ है ... बहुत लजवाब ...
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद पुनः आपको मंच पर पाकर आह्लादित हूँ आदरणीय नसवा जी। नमन।
Deleteवाह!
ReplyDeleteबेहद उम्दा आदरणीय सर।
सादर प्रणाम 🙏
उत्साहवर्धन हेतु आभारी हूँ आदरणीया आँचल जी।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२२-०३-२०२०) को शब्द-सृजन-१३"साँस"( चर्चाअंक-३६४८) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
आभार आदरणीया
Deleteचुप होने लगी, हैं तस्वीरें!
ReplyDeleteख़ामोश होने लगी हैं, सारी तकरीरें!
मिटने लगी हैं ये लकीरें!
प्रयोगात्मक सुंदर सृजन ।
भाव पूर्ण ।
अभिनव।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कुसुम जी।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय ओंकार जी।
Deleteवाह बेहद खूबसूरत एवं सार्थक अभिव्यक्ति सुंदर लेखन।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया सुजाता जी।
Deleteचुप होने लगी, हैं तस्वीरें!
ReplyDeleteख़ामोश होने लगी हैं, सारी तकरीरें!
मिटने लगी हैं ये लकीरें
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमन आपको
हृदयतल सा आभार आदरणीया कामिनी जी।
ReplyDeleteकोरोना के संक्रमण से अपना बचाव करें व अपना ख्याल रखें । धन्यवाद ।
भटकने लगे, हैं ये कदम!
ReplyDeleteहलक तक, आकर रुकी है जान ये!
अटक सी, गई ये साँसें!
वाह!!!
लाजवाब सृजन।
हृदयतल सा आभार आदरणीया सुधा देवरानी जी।
Deleteकोरोना के संक्रमण से अपना बचाव करें व अपना ख्याल रखें । धन्यवाद ।
हृदयतल से आभार
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