सो गए, अरमान सारे,
दिन-रात हारे,
बिन तुम्हारे!
अधूरी , मन की बातें,
किसको सुनाते,
कह गए, खुद आप से ही,
बिन तुम्हारे!
झकोरे, ठंढ़े पवन के,
रुक से गए हैं,
छू गई, इक तपती अगन,
बिन तुम्हारे!
सुबह के, रंग धुंधले,
शाम धुंधली,
धुँधले हुए, अब रात सारे,
बिन तुम्हारे!
जग पड़ी, टीस सी,
पीड़ पगली,
इक कसक सी, उठ रही,
बिन तुम्हारे!
चुभ गई, ये रौशनी,
ये चाँदनी,
सताने लगी, ये रात भर,
बिन तुम्हारे!
पवन के शोर, फैले,
हर ओर,
सनन-सन, हवाएँ चली,
बिन तुम्हारे!
पल वो, जाते नहीं,
ठहरे हुए,
जज्ब हैं, जज्बात सारे,
बिन तुम्हारे!
रंग, तुम ही ले गए,
रहने लगे,
मेरे सपने , बेरंग सारे,
बिन तुम्हारे!
सो गए, अरमान सारे,
दिन-रात हारे,
बिन तुम्हारे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
सार्थक रचना।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय ।
Deleteवाह!
ReplyDeleteबहुत सुंदर विरह गीत
बेहद उम्दा।
सादर प्रणाम आदरणीय सर 🙏
बस, लिख गया। आपकी प्रशंसा हेतु आभारी हूँ आदरणीया।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 21 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आदरणीय ।
Deleteबेहतरीन रचना आदरणीय 👌
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद पुनः आपकी प्रतिक्रिया पाकर मैं हर्षित हूँ । बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनुराधा जी।
Deleteरंग, तुम ही ले गए,
ReplyDeleteरहने लगे,
मेरे सपने , बेरंग सारे,
बिन तुम्हारे!
बहुत सुन्दर विरह गीत....
वाह!!!
उत्साहवर्धन हेतु हृदयतल से आभार। बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कामिनी जी।
Deleteपल वो, जाते नहीं,
ReplyDeleteठहरे हुए,
जज्ब हैं, जज्बात सारे,
बिन तुम्हारे!
बेहतरीन सृजन ,सादर नमस्कार आपको
कृतज्ञ हूँ आपकी उत्साहवर्धन हेतु । बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कामिनी जी।
Deleteवाह! दिल को छूती हुई रचना।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय विश्वमोहन जी ।
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