Friday, 23 February 2024

कहां ये मन

कहीं हूं मैं, और, कहीं ये मन...
उड़ चला कहीं,
न जाने, क्यूं गया कहीं?
बिन कहे,
कहीं, भटका ये मन!

वश में, यूं भी तो, कब ये मन!
करे अपनी ही,
कहे, बहकी बातें कई,
न समझे,
रिवाजों को, ये मन!

उलझाए, भीगे से जज्बातों में!
रुलाए, रातों में,
पहेली अनसुलझी सी,
कह जाए,
इन कानों में ये मन!

जाने, अब, ठौर कहां मन का!
जैसे, हो दरिया,
या, चंचल इक खुश्बू,
बह जाए,
बहा ले जाए, ये मन!

कहीं हूं मैं, और, कहीं ये मन...
जाने, ढूंढ़े क्या!
यूं लगता, कोई ठौर नया!
या वो ढूंढ़े,
संगी दूजा ही ये मन!

8 comments:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति 👍
    http://vivekoks.blogspot.com/2024/02/blog-post_23.html

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 24 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  3. चंचल मन
    बहुत सुन्दर रचना.

    पधारें- तुम हो तो हूँ

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  4. वाह! पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूब!

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  5. वाह!!!
    चंचल मन पर बहुत ही सुन्दर सृजन।

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  6. वाह! शानदार कविता।

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