Sunday, 10 November 2024

दफ्न


अधीर मन, सुने कहां!
नित छेड़े, दफ्न कोई दास्तां.....

कारवां सी, बहती ये नदी,
अक्श, बहा ले जाती,
बह जाती, सदी,
बहते कहां, सिल पे बने निशां,
बहते कहां, दास्तां!

अधीर मन, सुने कहां....

लगे दफ्न सी, कहीं दास्तां,
ज्यूं, ओझल कहकशां,
रुकी सी कारवां,
चल पड़े हों, जगकर सब निशां,
सुनाते इक, दास्तां!

अधीर मन, सुने कहां.....

खींच लाए, फिर उसी तीर,
बहे जहां, धार अधीर,
जगाए, सोेए पीर,
जगाए सारे, दफ्न से हुए निशां,
सुनाए वही, दास्तां!

अधीर मन, सुने कहां....

पर न अब, उस ओर जाएंगे,
जरा उसे भी समझाएंगे,
सोचूं, नित यही,
पर, कब सुने मन जिद पे अड़ा,
सुनाए वही, दास्तां!

अधीर मन, सुने कहां!
नित छेड़े, दफ्न कोई दास्तां.....

Tuesday, 5 November 2024

कसर

गुजरते मंजर के सारे निशां, सर-बसर,
बस रही, इक तेरी कसर!

बहती हवा, कहती रही तेरा ही पता,
ढ़लती किरण, उकेरती गई तेरे ही निशां,
यूं उभरते तस्वीर सारे, सर-बसर,
बस रही, इक तेरी कसर!

कब हुआ खाली, पटल आसमां का,
उभर आते अक्श, यूं गुजरते बादलों से,
छुपकर झांकते नजारे, सर-बसर,
बस रही, इक तेरी कसर!

टूटे पात, लगे पतझड़ से ये जज्बात,
बहते नैन, इस निर्झर में पलते कब चैन,
निर्झर सी ये जज्बातें, सर-बसर,
बस रही, इक तेरी कसर!

गुजरते मंजर के सारे निशां, सर-बसर,
बस रही, इक तेरी कसर!