जला गई हो, रौशनी ही जिसे,
वो करे, यकीं कैसे?
लिए आस, बुझते रहे जलते पल कई,
सदियां, यूं पल में समाती रही,
छलते ये पल,
वो करे, यकीं कैसे?
यूं सुलगते, बंजर मन के ये घास-पात,
उलझते, खुद ही खुद जज्बात,
जगाए रात,
वो करे, यकीं कैसे?
छनकर बादलों से, यूं गुजरी इक सदा,
ज्यूं भूला, अंधियारों का पता,
मन तू बता,
वो करे, यकीं कैसे?
जलाते रहे, ताउम्र रौशन कई एहसास,
जकरते, फिर वो ही अंकपाश,
बुलाए पास,
वो करे, यकीं कैसे?
जला गई हो, रौशनी ही जिसे,
वो करे, यकीं कैसे?
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 28 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर
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