कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Showing posts with label अतिरंजित. Show all posts
Showing posts with label अतिरंजित. Show all posts
Monday, 19 April 2021

रक्तरंजित बिसात

›
वक्त की, ये रक्तरंजित बिसात, शह दे या मात! कौन जाने, क्या हो अगले पल! समतल सी, इक प्रवाह हो,  या सुनामी सी हलचल! अप्रत्याशित सी, इसकी हर बात...
21 comments:
Saturday, 8 February 2020

सपने

›
अजीब होते हैं, ये कितने... बंद होते ही आँखें, तैरने लगते हैं सपने! क्षण-भर को, कितने लगते ये अपने, समाए कब, खुली पलकों में, जागे...
2 comments:
Monday, 7 November 2016

अतिरंजित पल

›
हैं कितने सम्मोहक ये, उनींदे से अतिरंजित पल...... कतारें दीप की जल रही हर राह हर पथ पर, जन-सैलाब उमर आया है हर नदी हर घाट पर, हो रहा ...
›
Home
View web version

About Me

My photo
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
View my complete profile
Powered by Blogger.