कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Sunday, 12 April 2020

प्यासा

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इतना, छलका-छलका सा! हैरान हूँ मैं, ये सागर भी है प्यासा! यूँ ही, भटका-भटका सा! इन हवाओं को भी, इक मंद समीर, की है आशा! ऐ सा...
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Sunday, 28 July 2019

काश के वन

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करूं लाख जतन, उग आते है, काश के वन! ललचाए मन, अनचाहे से ये काश के वन, विस्तृत घने, अपरिमित काश के वन, पथ भटकाए, मन भरमाए, ये दूर कहीं...
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Saturday, 23 December 2017

हजारदास्ताँ

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अपरिमित प्रेम तुम्हारा, क्या बंधेगे परिधि में...... छलक आते हैं, अक्सर जो दो नैनों में, बांध तोड़कर बह जाते हैं, जलप्रपात ये, मन ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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