कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Tuesday, 2 October 2018

शायद तुम आए थे!

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शायद तुम आए थे? हाँ, तुम ही आए थे! महक उठी है, कचनार सी, मदहोश नशे में, झूम रहे हैं गुंचे, खिल रही, कली जूही की, नृत्य नाद कर रहे, न...
Thursday, 2 August 2018

तू, मैं और प्यार

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ऐसा ही है कुछ, तेरा प्यार... मैं, स्तब्ध द्रष्टा, तू, सहस्त्र जलधार, मौन मैं, तू, बातें हजार! संकल्पना, मैं, तू, मूर्त रूप साकार...
Wednesday, 13 April 2016

श्रृंगार

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श्रृंगार ये किसी नव दुल्हन के, मन रिझता जाए! कर आई श्रृंगार बहारें, रुत खिलने के अब आए, अनछुई अनुभूतियाें के अनुराग, अब मन प्रांगण में...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Chennai, Tamilnadu, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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