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Tuesday, 2 October 2018

शायद तुम आए थे!

शायद तुम आए थे? हाँ, तुम ही आए थे!

महक उठी है, कचनार सी,
मदहोश नशे में, झूम रहे हैं गुंचे,
खिल रही, कली जूही की,
नृत्य नाद कर रहे, नभ पर वो भँवरे,
क्या तुम ही आए थे?

चल रही है, पवन बासंती,
गीत अजूबा, गा रही वो कोयल,
तम में, घुल रही चाँदनी,
अदभुत छटा लेकर, निखरा है नभ,
शायद तुम ही आए थे?

ये हवाएँ, ऐसी सर्द ना थी!
ये दिशाएँ, जरा भी जर्द ना थी!
ये संदेशे तेरा ही लाई है,
छूकर तुमको ही,आई ये पुरवाई है,
बोलो ना तुम आए थे?

कह भी दो, ये राज है क्या!
ये बिन बादल, बरसात है क्या!
क्यूँ मौसम ने रंग बदले,
सातो रंग, क्यूँ अंबर पर है बिखरे?
कहो ना तुम ही आए थे!

चाह जगी है, फिर जीने की,
अभिलाषा है, फिर रस पीने की,
उत्कंठा एक ही मन में,
प्राण फूंक गया, कोई निष्प्राणो में!
हाँ, हाँ, तुम ही आए थे!

शायद तुम आए थे? हाँ, तुम ही आए थे!

Thursday, 2 August 2018

तू, मैं और प्यार

ऐसा ही है कुछ,
तेरा प्यार...

मैं, स्तब्ध द्रष्टा,
तू, सहस्त्र जलधार,
मौन मैं,
तू, बातें हजार!

संकल्पना, मैं,
तू, मूर्त रूप साकार,
लघु मैं,
तू, वृहद आकार!

हूँ, ख्वाब मैं,
तू, मेरी ही पुकार,
नींद मैं,
तू, सपन साकार!

ठहरा ताल, मैं,
तू, नभ की बौछार,
वृक्ष मैं,
तू, बहती बयार!

मैं, गंध रिक्त,
तू, महुआ कचनार,
रूप मैं,
तू, रूप श्रृंगार!

शब्द रहित, मैं,
तू, शब्द अलंकार,
धुन मैं,
तू, संगीत बहार!

ऐसा ही है कुछ,
तेरा प्यार...

Wednesday, 13 April 2016

श्रृंगार

श्रृंगार ये किसी नव दुल्हन के, मन रिझता जाए!

कर आई श्रृंगार बहारें,
रुत खिलने के अब आए,
अनछुई अनुभूतियाें के अनुराग,
अब मन प्रांगण में लहराए!

सृजन हो रहे क्षण खुमारियों के, मन को भरमाए!

अमलतास यहां बलखाए,
लचकती डाल फूलों के इठलाए,
नार गुलमोहर सी मनभावन,
मनबसिया के मन को लुभाए।

कचनार खिली अब बागों में, खुश्बु मन भरमाए!

बहारों का यौवन इतराए,
सावन के झूलों सा मन लहराए,
निरस्त हो रहे राह दूरियों के,
मनसिज सा मेरा मन ललचाए।

आलम आज मदहोशियों के, मन डूबा जाए!